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Home›देश›मिशन 2024: ममता बनर्जी के एकला चलो के पीछे क्या है गणित? मजबूरी या मास्टरस्ट्रोक…

मिशन 2024: ममता बनर्जी के एकला चलो के पीछे क्या है गणित? मजबूरी या मास्टरस्ट्रोक…

By Anupam Savera
March 4, 2023
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नॉर्थ-ईस्ट में चुनाव और पश्चिम बंगाल में उपचुनाव के नतीजे आते ही टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने विपक्षी एका को बड़ा झटका दिया. शुक्रवार को पत्रकारों से बात करते हुए ममता बनर्जी ने कहा कि हम चुनाव अकेले लड़ेंगे.

ममता ने कहा कि बंगाल में कांग्रेस, लेफ्ट और बीजेपी का अनैतिक गठबंधन बना है. इसलिए हम आम जनता के साथ गठबंधन करके 2024 में अकेले लड़ेंगे. ममता के इस ऐलान से बीजेपी के खिलाफ बन रहे विपक्षी एका को बड़ा झटका लगा है.

एक सवाल के जवाब में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे विश्वास है कि जो लोग भाजपा को हराना चाहते हैं वे निश्चित रूप से तृणमूल कांग्रेस को वोट देंगे. बंगाल में टीएमसी ही बीजेपी से मजबूती से लड़ रही है.

ममता बनर्जी ने सीपीएम और कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों पार्टियों ने बंगाल के सागरदिघी उपचुनाव में सांप्रदायिकता का कार्ड खेला है, जिस वजह से वहां हम हार गए.

ममता के इस ऐलान के बाद तृणमूल कांग्रेस के एक सहयोगी ट्विटर हैंडल खेला होबे से लिखा गया कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी को वोट देने का मतलब है, बीजेपी को वोट देना. अधीर रंजन चौधरी के वाम, राम और कांग्रेस नीति की भी आलोचना की गई है.

ममता क्यों गुस्से में है?
विपक्षी एका के प्रयास में जुटी ममता बनर्जी अचानक यह फैसला क्यों लिया है? इसको लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज है. गठबंधन पर ममता के गुस्से की आखिर वजह क्या है?

  1. सागरदिघी में करारी हार- 2011 में ममता बनर्जी बंगाल की सत्ता में आई. इसी साल मुर्शिदाबाद के सागरदिघी सीट भी उनकी पार्टी जीती. इसके बाद तृणमूल के उम्मीदवार लगातार 2016 और 2021 में भी यहां से जीते.

2022 में सागरदिघी विधायक की मौत के बाद यह सीट रिक्त हो गया. ममता ने यहां से अपने दूर के रिश्तेदार देबाशीष बनर्जी को उतार दिया. सागरदिघी मुर्शिदाबाद जिले की सीट है और यहां से अभी सांसद अधीर रंजन चौधरी हैं.

चौधरी ने वाम के समर्थन से कांग्रेस कैंडिडेट उतार दिए. मुस्लिम बहुल सागरदिघी में तृणमूल की करारी हार हुई. ममता के उम्मीदवार 10 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव हार गए. बंगाल में पहली बार तृणमूल कांग्रेस सीटिंग सीट हार गई. ममता का आरोप है कि वाम और कांग्रेस ने यहां ध्रुवीकरण की राजनीति की.

  1. मेघालय में राहुल ने बोला था हमला- 22 फरवरी को मेघालय में पहली रैली के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को बीजेपी का बी टीम बताया. राहुल ने रैली में कहा कि ममता बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए यहां आई हैं.

उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस गोवा में गई तो वहां भी बीजेपी को फायदा पहुंचाया. अब आपके यहां आई है तो यहां भी फायदा पहुंचाने की कोशिश में है. आप उनका इतिहास जान ही रहे हैं.

राहुल के इस हमले का ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने तुरंत जवाब दिया. अभिषेक ने लिखा कि कांग्रेस अक्षम हो गई है और राजनीति में कन्फ्यूजन पैदा कर रही है. हम पर हमला करने से अच्छा होगा कि राहुल गांधी अपनी राजनीति पर ध्यान दें.

ममता बनर्जी का राजनीतिक इतिहास
युवा कांग्रेस से पॉलिटिकल करियर की शुरुआत करने वाली ममता 1984 में पहली बार जादवपुर सीट से सांसद चुनी गईं. 2011 तक ममता बनर्जी लोकसभा की सांसद रहीं. ममता राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी और मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री रह चुकी हैं.

ममता बनर्जी रेल, कृषि, युवा और खनन जैसे विभाग केंद्र में संभाल चुकी हैं. 2011 में कांग्रेस के साथ मिलकर ममता ने वाम का किला बंगाल में उखाड़ फेंका और मुख्यमंत्री बनी. हालांकि, 2012 में कांग्रेस के साथ पटरी नहीं बैठने पर ममता ने गठबंधन तोड़ लिया.

2014 और 2019 का चुनाव ममता की पार्टी अकेले दम पर लड़ी. 2016 और 2021 के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी अकेले उतरी और बड़ी जीत दर्ज की.

ममता के लिए राहुल ने रद्द कर दी थी रैली
2021 के चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही थी. वहां तृणमूल का मुकाबला सीधे तौर पर बीजेपी से था. ममता के सहयोग के लिए राहुल गांधी ने बंगाल से दूरी बना ली.

राहुल बंगाल चुनाव में सिर्फ 2 जनसभा को संबोधित किया. कांग्रेस को इस वजह से काफी नुकसान भी हुआ और पार्टी 42 से जीरो सीट पर सिमट गई. हालांकि, ममता को इसका काफी फायदा मिला.

राहुल की इस फैसले का प्रदेश कांग्रेस ने खूब आलोचना की थी. समीक्षा बैठक में सीधे तौर पर तत्कालीन बंगाल प्रभारी ने कहा था कि हमे पता ही नहीं था कि चुनाव नहीं लड़ना है.

ममता बनर्जी की पार्टी क्या चाहती है?
हाल ही में एक इंटरव्यू में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी ने कहा कि ममता बनर्जी को केंद्र और राज्य दोनों जगहों की राजनीति का अनुभव है. ममता बनर्जी देश में एक मात्र महिला मुख्यमंत्री भी हैं.

इसलिए विपक्ष को चाहिए कि ममता बनर्जी के चेहरे को आगे कर 2024 का चुनाव लड़े. हमने 2021 में बीजेपी को बंगाल में पटखनी भी दी है और सबसे मजबूती से केंद्रीय एजेंसियों से लड़ भी रहे हैं.

अभिषेक बनर्जी के इस मांग पर अब तक किसी ने भी प्रतिक्रिया नहीं दी है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने तमिलनाडु में पिछले दिनों कहा कि बिना चेहरा घोषित किए 2024 का चुनाव लड़ा जाएगा.

एकला की राह पर ममता क्यों, 4 वजहें…

  1. बंगाल में सीट बंटवारे में हिस्सेदारी नहीं देना चाहती- पश्चिम बंगाल में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं, जिसमें से पिछले चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी को 22 सीटें मिली थी. कांग्रेस 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि 18 सीट बीजेपी के खाते में गया था.

2014 में ममता बनर्जी की पार्टी को 34 सीटें मिली थी. टीएमसी के लिए यह अब तक का रिकॉर्ड था. वर्तमान में कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी बंगाल में गठबंधन कर चुनाव लड़ रही हैं.

तृणमूल कांग्रेस जानती है कि अगर चुनाव पूर्व गठबंधन किया जाता है, तो दोनों पार्टियों को अधिक सीटें देनी पड़ेगी. ऐसे में खुद कम सीटों पर चुनाव लड़ना होगा.

अगर कम सीटों पर ममता बनर्जी की पार्टी चुनाव लड़ती है तो चुनाव पूर्व किसी भी स्थिति में दबाव बना नहीं सकती है. यहीं वजह है कि ममता बनर्जी अकेले बूते पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है.

  1. तीसरे मोर्चे का अनुभव भी बड़ी वजह- ममता बनर्जी 1980 के दशक से राजनीति में हैं. इस दौरान कई बार तीसरे मोर्चे का गठन हो चुका है और हर बार मोर्चा फ्लॉप ही हुआ है.

ममता इस अनुभव से वाकिफ हैं. लेफ्ट पहले ही ममता के चेहरे को लेकर सहमत नहीं है. इसके अलावा कई अन्य पार्टियां भी दीदी को सीधे तौर पर पसंद नहीं करती हैं.

तीसरे मोर्चे में अधिकांश क्षेत्रीय दल है, जिसका एक राज्य में ही पकड़ है. यानी ममता बनर्जी अगर किसी से गठबंधन भी करती हैं तो अन्य पार्टियों का वोट उन्हें शायद ही ट्रांसफर हो.

यही वजह है कि ममता किसी से गठबंधन नहीं करने की रणनीति पर काम कर रही है. ममता का फोकस पहले खुद मजबूत स्थिति में आने की है.

  1. प्रशांत किशोर का भी साथ छूटा- 2021 चुनाव में जीत के बाद ममता बनर्जी दिल्ली कूच का ऐलान की थी. उस वक्त पार्टी ने कई राज्यों में काडर खड़ा करने की योजना पर काम शुरू की.

हालांकि, कुछ दिनों में ही ममता के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उनसे अलग हो गए. ममता की योजना इसके बाद से ही कमजोर पड़ गई. पीके कई छोटी पार्टियों के प्रमुख से सीधे संपर्क में थे.

पीके के जाने के बाद ममता ने कांग्रेस से भी बातचीत की कोशिश की, लेकिन कांग्रेस की लेट-लतीफे फैसलों की वजह से कोई बात नहीं बन पाई. यही वजह है कि ममता अब अकेले मैदान में उतरना चाहती हैं.

  1. राजनीति हिंसा की वजह से कई दल विरोध में- बंगाल में राजनीतिक हिंसा की वजह से सीपीएम समेत कई वामपंथी पार्टियां ममता के विरोध में है. सीपीएम राष्ट्रीय पार्टी है और कांग्रेस भी उसके साथ है.

NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से 2019 तक बंगाल में 161 राजनीतिक हत्याएं हो चुकी हैं. यह देश में सबसे अधिक है. बंगाल में राजनीति हत्या पर हाईकोर्ट भी टिप्पणी कर चुका है.

कांग्रेस क्यों कर रही है दार्जिलिंग समझौते का जिक्र?
ममता बनर्जी के एकला चलो की नीति पर कांग्रेस नेता दबी जुबान से दार्जिलिंग समझौते का जिक्र करते हैं. उपराष्ट्रपति चुनाव के वक्त ममता बनर्जी ने गठबंधन उम्मीदवार मारगेट अल्वा को समर्थन नहीं देने का ऐलान किया था.

इसके बाद कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया था कि ममता और बीजेपी के बीच दार्जिलिंग में एक समझौता हुआ है. ममता के करीबियों पर एजेंसी कार्रवाई नहीं करेगी. इसलिए ममता बनर्जी ने बीजेपी को समर्थन दिया है. इसके बाद से ही कांग्रेस ममता पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगाती रही है.

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Editor: Anupma Singh
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